ट्रेन के ड्राइवर को क्यों दी जाती है यह लोहे की रिंग? जानें क्या होता है इसका काम

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आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम को लागून करने का मकसद ट्रेन को सुरक्षित अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचाना था,यानी इसका काम ट्रेनों का ठीक और सुरक्षित संचालन करना था। अंग्रेजों के दौर में ट्रैक सर्किट नहीं होता था ऐसे में टोकन एक्सचेंज के जरिए ही ट्रेन को सुरक्षित उसके गंतव्य तक पहुंचाया जाता था

आजादी के बाद से लेकर अब तक भारतीय रेलवे में एक बड़ा परिवर्तन आ चुका है। इंडियन रेलवे तेजी से अपने सिस्टम पर नए नए अपडेट ला रही है और आधुकनिकता की ओर बढ़ रही है। हालांकि देश में अब भी कई ऐसी जगहें हैं जहां प अंग्रेजों के जमाने में उपयोग किए जाने वाले तरीके अपनाए जा रहे हैं। ऐसा ही एक सिस्टम हैं टोकन एक्सचेंज का तरीका। रेलवे में टोकन एक्सचेंज तकनीक अब धीरे धीरे खत्म हो रही है लेकिन देश के कई हिस्सों में अब भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। आइए बताते हैं इसके बारे में

आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम को लागून करने का मकसद ट्रेन को सुरक्षित अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचाना था,यानी इसका काम ट्रेनों का ठीक और सुरक्षित संचालन करना था। अंग्रेजों के दौर में ट्रैक सर्किट नहीं होता था ऐसे में टोकन एक्सचेंज के जरिए ही ट्रेन को सुरक्षित उसके गंतव्य तक पहुंचाया जाता था। 

ट्रेन के ड्राइवर को क्यों दी जाती है यह लोहे की रिंग? जानें क्या होता है इसका काम

आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम को लागून करने का मकसद ट्रेन को सुरक्षित अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचाना था,यानी इसका काम ट्रेनों का ठीक और सुरक्षित संचालन करना था। अंग्रेजों के दौर में ट्रैक सर्किट नहीं होता था ऐसे में टोकन एक्सचेंज के जरिए ही ट्रेन को सुरक्षित उसके गंतव्य तक पहुंचाया जाता था।
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ट्रेन के ड्राइवर को क्यों दी जाती है यह लोहे की रिंग? जानें क्या होता है इसका काम
Image Source : फाइल फोटो
Written By: Gaurav Tiwari 21 Apr 2023, 9:24:53 IST
Indian Railway Token Exchange: आजादी के बाद से लेकर अब तक भारतीय रेलवे में एक बड़ा परिवर्तन आ चुका है। इंडियन रेलवे तेजी से अपने सिस्टम पर नए नए अपडेट ला रही है और आधुकनिकता की ओर बढ़ रही है। हालांकि देश में अब भी कई ऐसी जगहें हैं जहां प अंग्रेजों के जमाने में उपयोग किए जाने वाले तरीके अपनाए जा रहे हैं। ऐसा ही एक सिस्टम हैं टोकन एक्सचेंज का तरीका। रेलवे में टोकन एक्सचेंज तकनीक अब धीरे धीरे खत्म हो रही है लेकिन देश के कई हिस्सों में अब भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। आइए बताते हैं इसके बारे में…

आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम को लागून करने का मकसद ट्रेन को सुरक्षित अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचाना था,यानी इसका काम ट्रेनों का ठीक और सुरक्षित संचालन करना था। अंग्रेजों के दौर में ट्रैक सर्किट नहीं होता था ऐसे में टोकन एक्सचेंज के जरिए ही ट्रेन को सुरक्षित उसके गंतव्य तक पहुंचाया जाता था।

इन ट्रैक में होता था इसका इस्तेमाल
आज से करीब 50 साल पहले रेलवे में ट्रैक काफी छोटे छोटे हुआ करते थे। कई जगहों पर एक ही ट्रैक पर आने और जाने वाली ट्रेन चलती थीं ऐसे में टोकन एक्सचेंज ही वह सिस्टम था जो ट्रेन को एक दूसरी ट्रेन से टकराने से बचाता था।

बता दें कि टोकन एक्सचेंज में टोकन लोहे का एक बड़ा छल्ला होता है। स्टेशन मास्टर लोकोपायलट यानी ट्रेन के ड्राइवर को यह छल्ला देता है। लोकोपायलट को टोकन मिलने का यह मतलब होता है कि वह जिस ट्रैक पर गाड़ी चला रहा है वह लाइन पूरी तरह से क्लीयर है उसमें कोई और गाड़ी नहीं है। जब गाड़ी स्टेशन पर पहुंच जाती है तो ड्राइवर इस टोकन को जमा कर देता है और फिर वह टोकन उस ट्रैक पर चलने वाली दूसरी गाड़ी के ड्राइवर को दे दिया जाता है।

ऐसे काम करता है टोकन एक्सचेंज
आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज में लोहे के छल्ले में लोहे की एक बॉल होती है। इस बॉल को टेबलेट कहते हैं। स्टेशन मास्टर ड्राइवर से टोकन लेकर टोकन बॉल को स्टेशन पर लगे नेल बॉल मशीन पर फिट करता है। इससे अगले स्टेशन तक रूट क्लीयर माना जाता है। अगर किसी वजह से ट्रेन स्टेशन पर नहीं पहुंचती तो इससे पिछले स्टेशन पर लगी नेल बॉल मशीन अनलॉक नहीं होगी और उस स्टेशन से कोई भी ट्रेन उस ट्रैक पर नहीं आ पाएगी।

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