क्या आप जानतें हैं कि चलती हुई ट्रेन के आगे अगर अचानक से कोई जानवर या व्यक्ति आ जाता है तो ट्रेन का ड्राईवर ट्रेन को कैसे रोकता है, ट्रेन कितनी देर में रूकती है, ट्रेन का ब्रकिंग सिस्टम कैसा होता है, ट्रेन में ब्रेक लगाना कब अनिवार्य होता है, इत्यादि को जानने के लिए आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.
आजकल ट्रेन एक्सीडेंट्स ज्यादा सुनने और देखने में आ रहे हैं. क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि ट्रेन चलाने वाला ड्राईवर यानी लोकोपायलट अचानक से रेल की पटरी पर आए लोगों या जानवरों को देखने के बाद भी ट्रेन क्यों नहीं रोक पाता है या फिर ट्रेन रुकने में डेरी हो जाती है. आखिर ट्रेन में कौन सा ब्रेक होता है, कितने ब्रेक होते हैं ट्रेन में, ब्रेक लगाना कब अनिवार्य होता है, ब्रेक लगाने के बाद ट्रेन कितनी देर में रूकती है, ट्रेन का इमरजेंसी ब्रेक किसे कहते है इत्यादि जैसे कई ट्रेन की ब्रेक से जुड़े सवालों को आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं और जानते हैं ट्रेन के ब्रकिंग सिस्टम के बारे में.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रेन में या किसी भी वाहन में ब्रकिंग सिस्टम, वाहन को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ताकि ट्रेन या वाहन की गति को विशिष्ट सीमा के भीतर बनाए रखा जा सके. एक चलती हुई ट्रेन में ऊर्जा होती है, जिसे गतिशील (kinetic) ऊर्जा कहा जाता है और ट्रेन को रोकने के लिए इस उर्जा को ट्रेन से हटाना होता है. इसके लिए गतिशील ऊर्जा को परिवर्तित करना होता है. ऐसा करने का सबसे आसान तरीका है ब्रेक लगाना और गतिशील (kinetic) ऊर्जा को उष्ण (heat) ऊर्जा में परिवर्तित करना. इससे पहिये धीमे हो जाते हैं और अंत में ट्रेन रुक जाती है.
आइये अब अध्ययन करते हैं कि ट्रेन में कितने प्रकार की ब्रेक होती हैं?
ब्रेक्स को रेलवे ट्रेनों के कोचों पर धीमा, नियंत्रण त्वरण को सक्षम करने या पार्क किए जाने पर खड़े रखने के लिए उपयोग किया जाता है.
बकि बुनियादी सिद्धांत सड़क वाहन के समान है, लेकिन कई जुड़े हुए रेल के डिब्बों को नियंत्रित करने की आवश्यकता और परिचालन सुविधाएं ट्रेन में अधिक जटिल होती हैं. किसी भी ब्रेकिंग सिस्टम के नियंत्रण में किसी भी वाहन में ब्रेकिंग एक्शन को नियंत्रित करने वाले महत्वपूर्ण कारक दबाव, संपर्क में सतह क्षेत्र, ताप उत्पादन की मात्रा और ब्रेकिंग सामग्री का उपयोग किया जाता है.
उनके सक्रियण की विधि के अनुसार, ब्रेक को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
1. वायवीय ब्रेक (Pneumatic Brake)
a) वैक्यूम ब्रेक (Vacuum Brake)
b) संपीडित एयर ब्रेक (Compressed Air Brake)
2. Electropneumatic brakes
3. मैकेनिकल ब्रेक (Mechanical Brake)
4. विद्युत चुम्बकीय ब्रेक (Electromagnetic Brake
ट्रेन में एयर ब्रेक होता है जो बस और ट्रक में भी होता है. यह इंजन सहित पूरी रेलगाड़ी में काम करता है. इसमें एक पाइप होता है जिसमें हवा भरी होती है. ब्रेक-शू को यही हवा आगे-पीछे करती है और ब्रेक-शू के रगड़ खाने पर ब्रेक लगने लगती है. गाड़ी को चलाने के लिए ब्रेक पाइप में प्रेशर बनाया जाता है ताकी ब्रेक शू पहिये को अलग किया जा सके. तभी गाड़ी आगे बढ़ पाती है. क्या आप जानते हैं कि भारतीय रेल के ब्रेक पाइप में 5 किलोग्राम प्रति वर्ग-सेंटीमीटर का प्रेशर रहता है. एयर ब्रेक को काफी सुरक्षित और अच्छा माना जाता है.
वैक्यूम ब्रेक सिस्टम वैक्यूम ब्रेक सिलेंडर में पिस्टन के निचले हिस्से पर काम कर रहे वायुमंडलीय दबाव से अपनी ब्रेक फोर्स प्राप्त करता है जबकि पिस्टन के ऊपर एक वैक्यूम बनाए रखा जाता है. ट्रेन पाइप कोच की लंबाई में रहता है और नालिका युग्मन (hose coupling) द्वारा लगातार कोच से जुड़ा होता है. ट्रेन पाइप और वैक्यूम सिलेंडर में वैक्यूम बनाने के लिए लोकोमोटिव पर ejector या exhauster को जोड़ा जाता है.
Electropneumatic brakes (EP): एक उच्च निष्पादित EP ब्रेक में एक ट्रेन पाइप है जो ट्रेन पर सभी संग्रहों को हवा प्रदान करता है, ब्रेक के साथ तीन-तार नियंत्रण सर्किट विद्युतीय रूप से नियंत्रित होते हैं. यह हल्के से गंभीर तक, सात ब्रेकिंग स्तर प्रदान करता है और ड्राइवर को ब्रैकिंग के स्तर पर अधिक नियंत्रण देता है, जो यात्रीयों की सुविधा को काफी बढ़ा देता है. इसके जरिये लोकोपायलट तेजी से ब्रेक भी लगा सकता है क्योंकि विद्युत नियंत्रण सिग्नल ट्रेन में सभी वाहनों को तुरंत प्रभावी ढंग से प्रचारित किया जाता है, जबकि एक पारंपरिक प्रणाली में ब्रेक को सक्रिय करने वाले वायु दाब में परिवर्तन में कई सेकंड या दस सेकंड लग सकते हैं ताकि पूरी तरह से ट्रेन को रोका जा सके हालांकि इस प्रणाली का उपयोग लागत के कारण freight ट्रेनों पर नहीं किया जाता है.
इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रित वायवीय ब्रेक (Electronically controlled pneumatic brakes): इलेक्ट्रॉनिक रूप से नियंत्रित वायवीय ब्रेक (ECP) 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बहुत लंबी और भारी मालगाड़ी ट्रेनों के लिए इन ब्रेकों को बनाया गया है और उच्च स्तर के नियंत्रण के साथ EP ब्रेक का यह विकसित रूप है.
उच्च वायु दाब का मतलब है कि केवल छोटे ब्रेक सिलेंडर की आवश्यकता होती है जिसे आसानी से एयर ब्रेकिंग सिस्टम में वैगन पर छोटी जगहों में लगाया जा सकता है.
भाप इंजन वैक्यूम पर एक बहुत ही छोटे निष्कर्षक द्वारा बनाया जा सकता है. इनमें संग्रहों के लिए कोई दबाव की आवश्यकता नहीं होती है.
मेकनिकल ब्रेकिंग, निर्माण में सरल, मेकनिकल लाभ में वृद्धि, सभी पहियों पर बराबर की ब्रेकिंग दी जाती है.
विद्युत चुम्बकीय ब्रेक एक नकारात्मक पॉवर विकसित कर सकती है जो कि एक विशिष्ट इंजन के अधिकतम बिजली उत्पादन को लगभग दोगुना दर्शाती है.
इलेक्ट्रोडडायनामिक ब्रेकिंग सिस्टम में बिजली का उत्पादन होता है. कोई बाहरी पॉवर की आवश्यकता नहीं होती है.
क्या आप जानते हैं कि ट्रेन के ड्राईवर (लोकोपायलट) को ब्रेक लगाना कब जरुरी होता है?
ट्रेन को किस समय चलना है और कब रुकना है, ये लोकोपायलट सिग्नल और गार्ड के हिसाब से तय करता है. रेलवे में तीन सिग्नल होते हैं: हरा, पीला और लाल. हरे सिग्नल का मतलब है ट्रेन का अपनी स्पीड पर चलना, पीला सिग्नल मिलने पर लोकोपायलट ट्रेन की स्पीड को धीमी करना शुरू करता है, इसके लिए वह दो ब्रेक का इस्तेमाल करता है, एक इंजन के लिए और दूसरा पूरी ट्रेन के लिए. जैसा की ऊपर हम देख चुके है कि ट्रेन के हर डिब्बे और पहिये पर ब्रेक होता है और ये सभी ब्रेक पाइप से जुड़े होते हैं. लाल सिग्नल मिलने पर उसको ट्रेन को रोकना होता है. हम आपको बता दें कि ट्रेन को रफ्तार से चलाना, 150 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चलाना आसान होता है लेकिन ब्रेक लगाना काफी मुश्किल
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