तैयारी ही मायने रखती है, करियर के आखिरी दिन तक तैयारी बंद न हो – रोजर फेडरर

Spread The Love And Share This Post In These Platforms

  • रोजर फेडरर ने टेनिस से संन्यास की घोषणा कर दी है, दो दशक तक वो कोर्ट पर रहे और कई खिताब अपने नाम किए, कैसे वो खुद को मैच के लिए तैयार करते थे, जानिए उन्हीं की जुबानी…

‘मैं अपनी टीनएज तक की बात आपको बता रहा हूं। मुझे हार बिल्कुल सहन नहीं होती थी। मुझे पता ही नहीं था कि हारने के बाद कैसे रिएक्ट किया जाता है। मैच हारने के बाद मैं घंटों परेशान रहता था। रैकेट फेंक दिया करता था, देर तक रोता रहता था। यह मेरे पैरेंट्स के लिए भी डिस्टर्ब करने वाला व्यवहार था। वो तो कभी मुझ पर मैच हारने के कारण गुस्सा नहीं हुए, लेकिन मेरे व्यवहार के कारण वो जरूर दु:खी हो जाते थे। उन्हें टेनिस कोर्ट पर भी मेरे व्यवहार के कारण शर्मसार होना पड़ता था। उन्हें इस बारे में कुछ करना ही था। मुझे रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने कोशिश शुरू की। एक मैच हारने के बाद मैं कार में अपना दुखड़ा रो रहा था। मेरे पिता ने मुझे सड़क पर उतारा और मुझे शांत करने के लिए बर्फ में मेरा सिर घुसा दिया। एक बार तो पापा इतना गुस्सा हुए कि मुझे प्रैक्टिस सेशन पर केवल पांच स्विस फ्रैंक का सिक्का देकर घर चले गए। मैंने सोचा वो मजाक कर रहे हैं, क्योंकि घर यहां से मीलों दूर था। वो एक टीनएजर को ऐसे कैसे छोड़कर जा सकते थे, लेकिन वो वाकई चले गए। इस बात का मुझ पर बहुत असर हुआ। मुझे अहसास हुआ कि अगर मैं बड़े लेवल पर टेनिस खेलना चाहता हूं, तो इस तरह के बर्ताव से छुटकारा पाना होगा और मैच्योर बनना होगा। मेरा ये टेम्प्रामेंट धीरे-धीरे बदला। इसमें पैरेंट्स के अलावा मेरी पत्नी और मेरे पहले प्रोफेशनल कोच पीटर कार्टर का भी बड़ा हाथ रहा।

बेस्ट पाना है तो बेस्ट दें


∙सभी को जीत चाहिए, पर जीतेंगे तभी, जब बेस्ट होंगे।
∙मुश्किल घड़ी में सकारात्मक सोच ही पार लगा सकती है।
∙यह मानने में कोई बुराई नहीं कि उस दिन वो इंसान आपसे बेहतर था, जिससे आप हारे।
∙बेस्ट पाने के लिए बेस्ट देना भी पड़ता है।

मैंने जाना कि आप कभी खेल से बड़े नहीं हो सकते, आप खेल को जरूर अपने सपने जितना बड़ा कर सकते हैं। करियर के शुरुआती दौर में आप दिमागी रूप से खुद को तैयार करते हैं, ताकि बड़ा ‘खेल’ दिखा सकें। जब आप ये कर लेते हैं तो नए चैलेंज सामने आते हैं। जैसे आपका शरीर आपका साथ छोड़ने लगता है। अन्य दिक्कतें सिर उठाती हैं, जो घर, ऑफिस, रिश्तों से जुड़ी हो सकती हैं। लेकिन आपको इन्हें डील करना सीखना होगा। मिसाल बनने के लिए संघर्ष जरूरी है। जैसे उम्र होने के बाद मुझे अपने शरीर को किसी खेल के पहले तैयार करने में करीब ढाई घंटे का वक्त लगता है।
जैसे कार का इंजिन कई नट-बोल्ट की मदद से चलता है, वैसे ही हमारा शरीर है। आज घर से मैदान तक पहुंचने, स्ट्रेचिंग और सुबह का वॉर्मअप करने में ही 45 मिनट लगते हैं। इसके बा

द मैच में मैदान पर आधे घंटे का वॉर्मअप, जिम्नास्ट और स्पीड एक्सरसाइज। ढाई घंटे की मेहनत के बाद मैं मैच के लिए तैयार होता हूं। उम्र के साथ यह वक्त बढ़ता है। लेकिन तैयारी से आप मुंह नहीं फेर सकते, फिर आप करियर के किसी भी पड़ाव पर क्यों ना हों।
ये आप पर निर्भर है कि आप अपनी तैयारी कैसे करते हैं। सोच मायने नहीं रखती, मायने रखती है तैयारी। तैयारी आपके करियर के आखिरी दिन तक बंद नहीं होनी चाहिए, इसके लिए खुद को तैयार रखें।’

3.5/5 - (2 votes)

Spread The Love And Share This Post In These Platforms

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *