धार्मिक साहित्य | वेद | उपनिषद्

धार्मिक साहित्य वेद उपनिषद्
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धार्मिक साहित्य

 

  • धार्मिक साहित्य के अंतर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर ग्रंथों की चर्चा की जा सकती है।
  • ब्राह्मण ग्रंथों के अंतर्गत वेद, बाह्मण ग्रंथ, उपनिषद्, आरण्यक, वेदांग, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रंथ आते हैं।
  • ब्राह्मणेत्तर साहित्य के अंतर्गत बौद्ध तथा जैन साहित्य से सम्बन्धित रचनाओं का उल्लेख किया जाता है।

 

 

  • वेदः

  • ये भारत के सर्वप्राचीन धर्म ग्रंथ हैं जिनके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है।
  • वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद।
  • इन चारों वेदों को संहिता कहा जाता है।
  • ऋग्वेदः चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद में 10 मण्डल, 8 अष्टक, 10,600 मंत्र एवं 1028 सूक्त हैं।
  •  ऋग्वेद का रचना काल सामान्यतः 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच माना जाता है।
  • ऋग्वेद का दूसरा एवं सातवाँ मण्डल सर्वाधिक प्राचीन तथा पहला एवं दसवाँ मण्डल सबसे बाद का है।
  • ऋग्वेद के नौवें मण्डल को ‘सोम मण्डल भी’ कहा जाता है।
  • ऋग्वेद की मान्य 5 शाखाएँ हैं- शाकल, आश्वलायन, माण्डूकायन, शांखायन एवं वाष्कल। •
  • ऋग्वेद के 10वें मण्डल के पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है।
  • प्रसिद्ध गायत्री मंत्र (सावित्री) का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
  • सामवेद को भारतीय संगीत का मूल अथवा जनक कहा जाता है।
  • यह मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।
  • सामवेद में कुल 1875 ऋचाएँ हैं। इनमें मात्र 75 ही नई हैं, शेष ऋग्वेद से ली गई हैं।
  • इस वेद की तीन मुख्य शाखाएँ हैं- जैमिनीय राणायनीय तथा कौथुमीय।
  • यजुर्वेद में यज्ञ के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है।
  • यह एकमात्र ऐसा वेद है जो पद्य एवं गद्य दोनों ही रूपों में लिखा गया है।
  • इस वेद के दो भाग हैं- कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद ।
  • कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएँ हैं-तैत्तिरीय, कठ, कपिष्ठल, मैत्रायणी । 
  • यजुर्वेद धार्मिक अनुष्ठानों से संबंध रखता है।
  • शुक्ल यजुर्वेद की प्रधान शाखाएँ माध्यन्दिन तथा काण्व हैं।
  • शुक्ल यजुर्वेद की संहिताओं के रचयिता वाजसनेयी के पुत्र याज्ञवल्क्य हैं, इसलिए इसे वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है।
  • इसमें केवल मंत्रों का समावेश है।
  • अथर्ववेद में सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है.
  • इसमें कुल 20 मण्डल, 730 ऋचाएँ तथा 5987 मंत्र हैं।
  • अथर्ववेद की दो शाखाएँ- शौनक और पैपलाद है।

 

उपनिषद्ः

  • इसका शाब्दिक अर्थ है समीप बैठना।
  • इसमें आत्मा परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
  • उपनिषद वेदों का अन्तिम भाग है।
  • इसे वेदान्त भी कहा जाता है। *
  • उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।
  • प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, कठ, केन, मुण्डक, माण्डूक्य, प्रश्न, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, वृहदारण्यक, श्वेताश्वर तर कौषीतकि एवं मैत्राणीय ।
  • प्रसिद्ध राष्ट्रीय वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
  • आरण्यकः यह ब्राह्मण ग्रंथों का अन्तिम भाग है।
  • इसमें दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों का वर्णन है। इनकी रचना वनों में पढ़ाए जाने के निमित्त की गई।
  • प्रमुख आरण्यक हैं- ऐतरेय, शांखायन, तैत्तिरीय, वृहदारण्यक, जैमिनी, तवलकार  वेदांगः वेदों को भली-भाँति समझने के लिए छ: वेदांगों की रचना की गई है।
  • ये वेदों के शुद्ध उच्चारण तथा यज्ञादि करने में सहायक थे।
  • पुराणः पुराणों की संख्या 18 है।
  • रामायणः यह आदि काव्य है इसकी रचना दूसरी शताब्दी के आस-पास संस्कृत भाषा में वाल्मीकि द्वारा की गई थी। प्रारम्भ में इसमें 6000 श्लोक थे जो कालांतर में 24,000 हो गए।
  • इसे चतुर्विंशति सहस्त्री सहिता भी कहा जाता है।
  • महाभारतः इस महाकाव्य की रचना चौथी शताब्दी के आस-पास महर्षि व्यास द्वारा की गई थी।
  • प्रारंभ में इसमें 8,800 श्लोक थे जिसे जयसंहिता कहा जाता था, तत्पश्चात् इसमें श्लोकों की संख्या 24,000 हो गई और इसे भारत कहा जाने लगा।
  • कालांतर में इसमें श्लोकों की संख्या एक लाख हो जाने पर महाभारत या शतसहस्त्री सहिता कहा जाने लगा।
  • महाभारत का प्रारंभिक उल्लेख आश्वलायन गृहसूत्र में मिलता है।
  • ० सूत्र इस साहित्य की रचना ई. पूर्व छठी शताब्दी के आस पास की गई थी।
  • सूत्र ग्रंथों को कल्प भी कहा जाता है।
  • कल्प सूत्रः ऐसे सूत्र जिनमें नियमों एवं विधियों का प्रतिपादन किया जाता है. कल्पसूत्र कहलाते हैं।

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