
जीवन में निराशाएं भी कई प्रकार की होती हैं। कुछ छोटी निराशाएं होती हैं, तो कुछ बड़ी भी होती हैं। जैसे, नौकरी का छूट जाना या सेहत का खराब होना या किसी बेहद करीबी का इस दुनिया को छोड़ कर चले जाना, वगैरह। हालांकि यह बिल्कुल भी आसान नहीं है, लेकिन बेहद जरूरी है कि आप इस तरह की निराशाओं और दु:ख-तकलीफों का सामना करने के लिए खुद को हर तरह से तैयार करें। निराशाएं आपके आज को प्रभावित न करें इसके लिए ये उपाय किए जा सकते हैं…
1) खुद से सवाल करें कि चिंता से क्या फायदा
कई बार ऐसा भी होता है कि बुरी खबर का सामना करने के लिए जो तैयारी जरूरी होती है, उसमें चिंता फायदेमंद साबित होती है। कई बार बुरी खबर पर चिंता करने से ही कुछ मदद मिल सकती है। लेकिन अगर आप पहले से ही हरसंभव कोशिश करके देख चुके हैं, तो फिर यह बात समझी जा सकती है कि चिंता करने से आपको कोई खास फायदा नहीं होगा। चिंता काम की साबित नहीं होगी।
2) सबसे बुरा क्या हो सकता है, यह सोच लें
मन में डर हो, तो जहां तक संभव हो सके निराशा का सामना करने के लिए अपने सभी साधन इकट्ठे कर लें। फिर इसके बाद जो भी संभावित परिणाम आपको अपने ठीक सामने दिखाई दे रहा है, उसके बारे में विचार करके देख लें। इस तरह आप अपने अंदर लगातार पनपने वाले काल्पनिक या संभावित डर और एंग्जाइटी को काफी हद तक थामकर रख सकते हैं।
3) चिंता करें, लेकिन उम्मीद कभी न छोड़ें
किसी भी दु:ख, तकलीफ या सदमे का पूरी मजबूती के साथ सामना लगातार सकरात्मक रहकर ही किया जा सकता है। अपनी निराशाओं को इस तरह संभालें कि इससे आपके वर्तमान पर कोई असर न पड़ने पाए। यह तभी संभव है जब आप हर परिस्थिति में सकारात्मक और शांत बने रहेंगे। आप चिंता करें, लेकिन उम्मीद का दामन न छोड़ें। इसके लिए सामाजिक सहयोग भी जरूरी है।
4) दु:ख की रिहर्सल न करें, तकलीफ होगी
अगर आपको लगता है कि समय से पहले आने वाली पीड़ा का अहसास कर उसका दु:ख मनाने से कोई फायदा होगा, तो ऐसा नहीं है। नकारात्मक भावनाओं के साथ बने रहने से पहले भी तकलीफ होगी और बाद में तो और ज्यादा ही तकलीफ होगी। इसलिए उम्मीद रखें, लेकिन ओवर-कॉन्फिडेंस नहीं। नकारात्मक नतीजों को सिरे से नकारना भी ठीक नहीं है। आपको संतुलन बनाना सीखना होगा।