भारतीय दण्ड संहिता अध्याय 3 

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भारतीय दण्ड संहिता भारत के अन्दर भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराध की परिभाषा व  का प्रावधान करती है। किन्तु यह संहिता  पर लागू नहीं होती।अनुच्छेद 370 हटने के बाद में भी अब भारतीय दण्ड संहिता (IPC) लागू है।

भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1860 में लागू हुई। इसके बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे (विशेषकर  होने के बाद)। औरने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही लागू किया। लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन अन्य ब्रिटिश आदि) में भी लागू की गयी थी। लेकिन इसमें अब तक बहुत से संशोधन किये जा चुके है।

  • धारा 53 दण्ड
  • धारा 53 क निर्वसन के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना
  • धारा 54 लघु दण्डादेश का लघुकरण
  • धारा 55 आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण
  • धारा 55 क समुचित सरकार की परिभाषा
  • धारा 56 निरसित
  • धारा 57 दण्ड अवधियों की भिन्ने
  • धारा 58 निरसित
  • धारा 59 निरसित
  • धारा 60 दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा
  • धारा 61 निरसित
  • धारा 62 निरसित
  • धारा 63 जुर्माने की रकम
  • धारा 64 जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश
  • धारा 65 जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किये जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
  • धारा 66 जुर्माना न देने पर किस भाॅंति का कारावास दिया जाय
  • धारा 67 जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
  • धारा 68 जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना
  • धारा 69 जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान
  • धारा 70 जुर्माने का छः वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उदग्रहणीय होना
  • धारा 71 कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधि
  • धारा 72 कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिये दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है
  • धारा 73 एकांत परिरोध
  • धारा 74 एकांत परिरोध की अवधि
  • धारा 75 पूर्व दोषसिद्धि के पश्च्यात अध्याय १२ या अध्याय १७ के अधीन कतिपय अपराधों के लिये वर्धित दण्ड
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