
दुनिया में सबसे ज़्यादा बारिश का रिकॉर्ड ( Record Rainfall In India ) चेरापूंजी ( Cherrapunji ) नहीं बल्कि उससे 18 किलोमीटर दूर बसे कस्बे के नाम हो चुका है.
जानें कि इसके बावजूद इस ज़िले में भयानक जलसंकट (Water Crisis) के हालात क्यों हैं.
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- पहली बात यह है कि अब वो जगह बदल चुकी है,
- जहां सबसे ज़्यादा बारिश होती है. दूसरी ये कि चेरापूंजी का नाम सोहरा (Sohra) हो चुका है,
- हालांकि यह अभी प्रचलित नहीं हुआ है और कई बोर्डों पर अब भी चेरापूंजी ही लिखा दिखता है ,और
- खास बात ये है कि ये नहीं बताया जाता है कि इतनी बारिश होने के बावजूद पानी का होता क्या है ?
- भूमिगत जलस्तर (Ground Water) और पीने के पानी का संकट यहां क्यों खड़ा है ? और
- सबसे ज़्यादा बारिश के लिए जो इलाका नामजद किया गया है, वहां क्या हालात हैं?
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अब ये रिकॉर्ड उसके पास के ही कस्बे मॉसिनरम (Mawsynram) के नाम हो चुका है. हालांकि इस पर विवाद जारी है लेकिन विश्व रिकॉर्ड की गिनीज़ बुक (Guinness book of World Records) और सरकारी दस्तावेज़ों में ये दर्ज हो चुका है.
तो अब जानिए कि यहां जल संवर्धन व संरक्षण (Water Conservation) को लेकर क्या हालात हैं और जलसंकट कैसे बढ़ रहा है.
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- मेघालय राज्य बांग्लादेश से सटा हुआ है.
- पहाड़ों की बहुलता का प्रदेश है.
- चेरापूंजी उर्फ सोहरा और मॉसिनरम दोनों ही कस्बे पहाड़ी इलाकों पर बसे हैं. पानी बरसता है तो जून से सितंबर तक यहां कई झरने फूट पड़ते हैं और पहाड़ों से पानी बहते हुए बांग्लादेश पहुंच जाता है.
- सर्दियों के मौसम तक सोहरा में पानी की किल्लत के हालात पैदा हो जाते हैं. खास तौर से पीने के पानी के लिए लोगों को मीलों का सफर करना होता है.
- जलसंकट के चलते ही इस इलाके को दुनिया का सबसे गीला रेगिस्तान कहा जाने लगा है.

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- ये एक विडंबना ही है कि जहां दुनिया की सबसे ज़्यादा बारिश होती है, वहां पानी का संकट भयावह होता जा रहा है.
- हालात ये हैं कि लोग मीलों दूर जाकर सरकारी पाइपलाइन से पानी लेते हैं, जो करीब 25 से 30 साल पुरानी है. इस पाइपलाइन से मिलने वाला पानी साफ भी नहीं है
- क्योंकि इस पाइपलाइन में कोयले की खदानों से गुज़रने वाला पानी भी मिल जाता है.
- पूर्व खासी ज़िले में सोहरा और मॉसिनरम कस्बे स्थित हैं और यहां कोई रिज़र्वायर नहीं है, जिसमें पानी का संरक्षण किया जा सके.
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- भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा पूर्व खासी ज़िले के लिए जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि ज़िले में भूमिगत जल के संरक्षण के लिए कुएं बनाने का ही विकल्प आज़माया जा रहा था.
- 2013 में पाया गया था कि ज़िले में 60 से करीब 250 मीटर तक की खुदाई पर कुओं में पानी का सोता मिलता था.
- इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भूमिगत जल संरक्षण के लिए ज़िला तकरीबन पूरी तरह बारिश के पानी पर ही निर्भर रहा. वहीं, डाउनटूअर्थ की एक रिपोर्ट में कहा गया कि यहां कोई रिज़वार्यर तो दूर बल्कि पेड़ों का कोई जाल तक नहीं है, जिससे भूमिगत जलस्तर में सुधार हो सके.
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सोहरा के लिए जल संरक्षण विभाग की मदद से पीएचई ने 2010 में ग्रेटर सोहरा वॉटर सप्लाई स्कीम लॉंच की थी, जिसके ज़रिए लोगों को पीने का पानी आसानी से मुहैया कराने का काम किया जाना था, लेकिन टीओआई की एक रिपोर्ट में कहा गया कि आठ साल बाद भी ये स्कीम एक सपना बनकर रह गई.
गांव के मुखिया के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया था ‘अगर हमें पानी नहीं मिलता तो हमें प्रति हज़ार लीटर पानी 300 रुपये में खरीदना होगा और जो लोग कीमत नहीं दे पाएंगे, उन्हें मजबूरन झरनों या धाराओं से ही पानी लेना होगा’.
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सोहरा समुद्र तल से 1484 मीटर यानी करीब डेढ़ किमी की ऊंचाई पर पहाड़ी हिस्से में बसा है. इसी तरह मॉसिनरम भी.
इसके निचले हिस्से में बांग्लादेश की सीमा है और नज़दीक ही बंगाल की खाड़ी.
इन भौगोलिक स्थितियों के चलते ही यहां रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुआ करती है लेकिन माना जाता है कि इसी भूगोल के कारण यहां पानी की सप्लाई इतनी बड़ी समस्या है.
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कुल मिलाकर बात ये है कि यहां योजनाएं लागू न होने के कारण बेहद बारिश होने के बावजूद पानी रुकता नहीं है. साथ ही, अपने साथ पहाड़ियों और पठारों की मिट्टी भी बहा ले जाता है, जिससे कृषि का संकट भी बढ़ जाता है.
नेशनल जियोग्राफिक की इसी महीने की रिपोर्ट में कहा गया कि सोहरा में पिछले कुछ सालों से हर साल सर्दियों में सूखे के हालात बन रहे हैं. वहीं, बिज़नेस वर्ल्ड की दो दिन पहले की रिपोर्ट की मानें तो यहां पीने के साफ पानी की समस्या बढ़ रही है.
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