
फोन और लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। खासकर आपकी आंखों के सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है।
आज के डिजिटल युग में हर काम स्मार्टफोन और लैपटॉप से हो रहे हैं। सुबह हो या देर रात लोग स्मार्टफोन पर लगे रहते हैं। इससे आंखों पर काफी नुकसान होता है। साथ ही कुछ हालात में अंधेपन की शिकायत हो जाती है। इसके अलावा नींद न आने की समस्या आम हो जाती है, जो माइग्रेन और अन्य बीमारियों की वजह बनती हैं।
फोन की ब्राइटनेस की वजह से आखों पर ज्यादा दबाव पड़ता है। ऐसे में आपको स्मार्टफोन की ब्राइटनेस को कंट्रोल रखना चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर फोन की ब्राइटनेस कितनी होनी चाहिए? तो बता दें कि फोन की ब्राइटनेस न ज्यादा कम और न ही ज्यादा होनी चाहिए। फोन की ब्राइटनेस को आसपास की लाइटिंग के हिसाब से सेट करना चाहिए। आमतौर पर ब्राइटनेस 50 फीसद पर रखना चाहिए। मार्केट में 1300 से लेकर 1500 nits पीक ब्राइटनेस वाले स्मार्टफोन मौजूद हैं। ऐसे में यूजर्स को हमेशा हाई ब्राइटनेस लेवल नहीं रखना चाहिए।
डॉर्क मोड
फोन की डिस्प्ले से ब्लू लाइट निकलती है, जो हमारी आंखों को नुकसान पहुंचाती है। ऐसे में यूजर्स को फोन में डॉर्क मोड का इस्तेमाल करना चाहिए। इस फीचर के ऑन होने पर फोन की डिस्प्ले का बैकग्राउंड ब्लैक हो जाता है। जबकि टेक्स्ट व्हाइट रहता है। इससे ब्लू लाइट कम मात्रा में निकलती है। अगर आप नया स्मार्टफोन खरीदें, तो चेक करना चाहिए कि फोन में डॉर्क मोड है या नहीं।
स्क्रीन टाइम
फोन या लैपटॉप के स्क्रीन टाइम को कम करना चाहिए। क्योंकि लंबा वक्त स्क्रीन पर गुजारने से आंखों में ड्राइनेस और स्ट्रेस की समस्या हो जाती है। ऐसे में एक्सपर्ट सलाह देते हैं, तो स्क्रीन टाइम को कम करना चाहिए। वही ज्यादा स्क्रीन टाइम होने पर आंखे दिन और रात में फर्क नहीं कर पाती हैं, जिससो नींद न