आजादी के अमृत महोत्सव पर्व पर हम आज आपके लिए भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान हुए अभी तक के सबसे बड़े संघर्ष भारत छोड़ो आंदोलन और उसके पीछे के कारणों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आयें हैंI
देश आजादी के 75वर्ष पूरे होने ” अमृत महोत्सव पर्व ” मना रहा है परन्तु ये आजादी हमें ऐसे ही नहीं मिली है बल्कि इसके लिए 200 वर्षों
तक भारतीयों ने कड़ा संघर्ष किया है, देशवासियों ने हजारों बलिदान दिए हैं तब जा कर 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली हैI अमृत महोत्सव के इस पर्व में हम आज आपके लिए आजादी के सबसे महत्वपूर्ण “भारत छोड़ो आंदोलन ” के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी ले कर आयें हैंI
9 अगस्त 1942 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा जन आंदोलन शुरू हुआ, जिसे भारत छोड़ो का नाम दिया गया, अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए कठोर और क्रूर कार्यवाही की परन्तु उस दौरान अंग्रेजों की अत्यंत दमनकारी नीतियों से उब चुके थे कि, उन्होंने अंग्रेजों को आंदोलन के माध्यम से भारत छोड़ने का स्पष्ट सन्देश दिया और ब्रिटिश सरकार के पास भी भारत से अपनी सत्ता को समाप्त करना ही एक आखिरी मार्ग बचा था I
करीब 80 साल पहले, 9 अगस्त, 1942 को, भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम के निर्णायक और अंतिम चरण की शुरुआत की, ये अंग्रेजी औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ एक जन आंदोंलन था जो बिना किसी नेतृत्व के प्रसारित हुआ, इस आंदोंलन की कल्पना भी किसी ने नहीं की थी कि, भारतीय बिना किसी नेतृत्व के कोई आन्दोलन कर सकते हैं, इस आन्दोलन ने विश्व को एक संदेश दिया कि भारतीय अब और अधिक समय तक ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी नहीं सहेंगे।
8 अगस्त 1947 को गाँधीजी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। गांधीजी ने बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान ( अब इसे अगस्त क्रांति मैदान भी कहते हैं) में अपने भाषण में “करो या मरो” का आह्वान किया, जिसके बाद भारतीय सड़कों पर आ गए और अंग्रेजों के विरुद्ध उग्र प्रदर्शन करने लगे, इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन की लोक प्रिय नेता अरुणा आसफअली ने ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराया था। उल्लेखित है कि ‘भारत छोड़ो’ का नारा एक समाजवादी और ट्रेड यूनियन नेता यूसुफ मेहरली द्वारा दिया गया था, मेहरअली ने ही “साइमन गो बैक” का नारा भी दिया था। इस आंदोंलन के दौरान सतारा और बलिया में लोगों ने समानांतर सरकार का भी गठन किया थाI
आंदोलन के कारण-
मार्च 1942 में क्रिप्स मिशन को भारत के संविधान एवं स्वशासन के निर्माण के लिये भेजा गया था, परन्तु ये मिशन असफल रहा, जोकि आंदोलन का तात्कालिक कारण बना, यह मिशन विफल हो गया क्योंकि इसने भारत के लिये पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की थी, साथ ही उस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध भी चल रहा था और अंग्रेज सरकार ने भारतीयों की सहमती के बिना भारत को युद्ध में सम्मिलित कर लिया था, दूसरी ओर ब्रिटिश – सरकार विरोधी भावना और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच उत्साह पैदा कर दिया था। वहीं अखिल भारतीय किसान सभा, फारवर्ड ब्लाक आदि संगठनों के गठन ने भी इस आंदोलन के लिये पृष्ठभूमि तैयार की।
आंदोंलन के चरण
ये आंदोलन कई चरणों में हुआ, जिसमें शुरुआत में शहरी विद्रोह, हड़ताल, बहिष्कार और धरने हुए, जिन्हें अंग्रेज सरकार द्वारा जल्द ही दबा दिया गया, पूरे देश में हड़तालें तथा प्रदर्शन हुए और श्रमिकों ने भी कारखानों और फैक्ट्रीयों में काम करने से मना कर दिया, गांधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस में कैद बंद कर दिया गया और लगभग सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारियां हो गईं, धीरे-धीरे ये आंदोलन गाँवों में भी फ़ैल गया, जिससे किसानों में भी विद्रोह की भावना का विस्तार हुआ , इसमें संचार प्रणालियों जैसे कि रेलवे ट्रैक और स्टेशन, टेलीग्राफ तार व पोल आदि को बाधित करने का प्रयास किया गया, सरकारी भवनों और औपनिवेशिक सत्ता के अन्य दृश्य प्रतीक को समाप्त करने का भी लक्ष्य रखा गया और अंत में अलग-अलग इलाकों (बलिया, तमलुक, सतारा आदि) में राष्ट्रीय सरकारों या समानांतर सरकारों का गठन किया गया।
यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज सरकार ने क्रूरता से कुचल दिया गया, और यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि, स्वतंत्रता द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ही दी जाएगी, किंतु इस आंदोलन के कारण सरकार को यह स्पष्ट हो गया कि भारत को लंबे समय तक नियंत्रित करना संभव नहीं है। इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार के साथ भारत की राजनीतिक वार्ता की प्रकृति ही बदल गई और अंततः इस आंदोलन के परिणामस्वरूप भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
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