वर्तमान में क्रिकेट के सभी प्रारुपों में तीन रंग की गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है– लाल, सफेद और गुलाबी। आइए इस लेख में जानते हैं क्रिकेट में इस्तेमाल की जाने वाली गेंदों और उनके रंगों के बारे में।
क्रिकेट की गेंद ठोस होती है और इसे चमड़े और कॉर्क की मदद से बनाया जाता है। वर्तमान में क्रिकेट के सभी प्रारुपों में तीन रंग की गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है– लाल, सफेद और गुलाबी। आइए इस लेख में जानते हैं क्रिकेट में इस्तेमाल की जाने वाली गेंदों और उनके रंगों के बारे में।
क्रिकेट की गेंदों के माप तौल के बारे में:
क्रिकेट की गेंदों का वजन 155.9 ग्राम और 163 ग्राम के बीच होता है और इसकी परिधि 22.4 और 22.9 सेंटीमीटर के बीच होती है।
क्रिकेट की गेंदों के रंगों के बारे में:
1- लाल रंग की गेंद (Red Ball)
पारंपिक रुप से क्रिकेट में लाल रंग की गेंद इस्तेमाल की जाती है। टेस्ट क्रिकेट (Test Cricket), घरेलू क्रिकेट (Domestic Cricket) और प्रथम श्रेणी क्रिकेट (First-Class Cricket) में लाल रंग की गेंद इस्तेमाल की जाती है क्योंकि उक्त मैचों में खिलाड़ी सफेद रंग की यूनिफार्म पहनते हैं। लाल रंग की गेंद पर सफेद रंग के धागे से सिलाई की जाती है।
2- सफेद रंग की गेंद (White Ball)
28 नवंबर 1978 तक क्रिकेट में लाल रंग की गेंद का ही इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया (Australia) और वेस्टइंडीज (West Indies) के बीच एक विश्व सीरीज़ के एक दिवसीय मैच (One-Day Match) को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में फ्लडलाइट्स में खेला जाना था। इस वजह से सफेद रंग की गेंद को चुना गया।
सफेद रंग की गेंद का इस्तेमाल एक दिवसीय (One-Day) और टी-20 (T-20) क्रिकेट में किया जाता है, जिससे खिलाड़ियों को फ्लड लाइट में खेले जाने वाले मैच में गेंद आसानी से दिखाई दे सके। मौजूदा वक्त में सफेद गेंद को हर एक दिवसीय फॉर्मेट में इस्तेमाल किया जाता है। सफेद रंग की गेंद पर गहरे हरे रंग के धागे से सिलाई की जाती है।
3- गुलाबी रंग की गेंद (Pink Ball)
क्रिकेट में गुलाबी रंग की गेंद का इस्तेमाल सिर्फ डे-नाइट टेस्ट मैच (Day-Night Test) में किया जाता है, जिससे रात में भी खिलाड़ियों को गेंद आसानी से दिखाई दे सके। जुलाई 2009 में पहली बार ऑस्ट्रेलिया (Australia) और इंग्लैण्ड (England) की महिला टीम के बीच वनडे मैच में गुलाबी रंग की गेंद का इस्तेमाल किया गया था। गुलाबी रंग की गेंद पर काले रंग के धागे से सिलाई की जाती है।
1- कूकाबुरा (Kookaburra)
2- ड्यूक (Duke)
3- एसजी (SG)
1- कूकाबुरा (Kookaburra): कूकाबुरा कंपनी की स्थापना वर्ष 1890 में हुई थी। इस ब्रांड की गेंदों को दुनिया भर में नंबर 1 माना जाता है। इन गेंदों को कच्चे माल और आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके बनाया जाता है।उच्च गुणवत्ता वाली कूकाबूरा गेंदों को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न की एक फैक्ट्री में बनाया जाता है।
इन गेंदों का वज़न लगभग 156 ग्राम होता है और इनका निर्माण 4-पीस को मिलाकर किया जाता है। इनके निर्माण में मुख्य रूप से मशीनों का प्रयोग किया जाता है। ये गेंद दुनिया भर में सभी टेस्ट, टी 20 अंतर्राष्ट्रीय और एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैचों में इस्तेमाल की जाती है। इस गेंद को ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, न्यूज़ीलैंड, श्रीलंका और जिंबाब्वे में किया जाता है। ये गेंद शुरुआती 20 ओवर्स में अच्छी स्विंग प्रदान करती है, लेकिन जब इसकी सिलाई खराब हो जाती है तो ये बल्लेबाजों को रन जड़ने में मदद करती है।
2- ड्यूक (Duke): ड्यूक क्रिकेट गेंदों का निर्माण साल 1760 से एक ब्रिटिश कंपनी द्वारा किया जाता है। कूकाबुरा की तुलना में ड्यूक बॉल गहरे रंग की होती है।
ड्यूक बॉल पूरी तरह से हस्तनिर्मित होती हैं और गुणवत्ता में उत्कृष्ट होती हैं। अच्छी गुणवत्ता के कारण ये गेंदें अन्य गेंदों की तुलना में अधिक समय तक नई रहती हैं। ये गेंदें सीमर्स की अधिक मदद करतीं हैं। फ़ास्ट बॉलर्स को इस गेंद को स्विंग कराने में आसानी होती है। इन गेंदों का उपयोग इंग्लैंड में क्रिकेट के लगभग सभी प्रारूपों में किया जाता है।
3- एसजी (SG): इसकी फुल फॉर्म सन्सपेरिल्स ग्रीनलैंड्स बॉल्स है। सन्सपेरिल्स कंपनी की स्थापना वर्ष 1931 में भाई केदारनाथ और द्वारकानाथ आनंद ने सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में की थी और बंटवारे के बाद यह कंपनी भारत के मेरठ में आ गयी थी।
वर्ष 1991 में BCCI ने टेस्ट क्रिकेट के लिए SG गेंदों को मंजूरी दी थी और तब से अब तक भारत में टेस्ट मैच इस गेंद के साथ खेले जाते हैं। इन गेंदों की सीम काफी उभरी हुई होती है जिसके कारण पूरे दिन खेलने के बाद भी ये गेंदें अच्छी कंडीशन में रहती है। इन गेंदे को आज भी कारीगरों द्वारा हाथों से बनाया जाता है। ये गेंद स्पिनर्स की अधिक मदद करती है।
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