Pryushan Parv पर्यूषण पर्व

पर्यूषण पर्व
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Pryushan Parv पर्यूषण पर्व

पर्यूषण पर्व, जैन समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है। जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्यूषण 8 दिन चलते हैं। 8 वें दिन जैन धर्म के लोगों का महत्वपूर्ण त्यौहार संवत्सरी महापर्व मनाया जाता है। इस दिन यथा शक्ति उपवास रखा जाता है। पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर क्षमायाचना पर्व मनाया जाता है। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं जिसे वो ‘दशलक्षण धर्म’ के नाम से संबोधित करते हैं।

जैन धर्म के दस लक्षण इस प्रकार है:-

1) उत्तम क्षमा, 2) उत्तम मार्दव, 3) उत्तम आर्जव, 4) उत्तम शौच, 5) उत्तम सत्य, 6) उत्तम संयम, 7) उत्तम तप, 8) उत्तम त्याग, 9) उत्तम अकिंचन्य, 10) उत्तम ब्रहमचर्य।

उत्तम क्षमा

  • (क) हम उनसे क्षमा मांगते है जिनके साथ हमने बुरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते है जिन्होंने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया हो॥ सिर्फ इंसानो के लिए हि नहीं बल्कि हर एक इन्द्रिय से पांच इन्द्रिय जीवो के प्रति जिनमें जीवन है उनके प्रति भी ऐसा भाव रखते हैं ॥
  • (ख) उत्तम क्षमा क्षमा हमारी आत्मा को सही राह खोजने मे और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है जिससे सम्यक दर्शन प्राप्त होता है ॥ सम्यक दर्शन वो भाव है जो आत्मा को कठोर तप त्याग की कुछ समय की यातना सहन करके परम आनंद मोक्ष को पाने का प्रथम मार्ग है ॥

 

उत्तम मार्दव

  • (क) अक्सर धन, संपदा, ऐश्वर्य मनुष्य को अहंकारी और अभिमानी बना देता है ऐसा व्यक्ति दूसरों को छोटा और स्वयं को सर्वोच्च मानता है॥

यह सब चीजें नाशवंत है यह सब चीजें एक दिन आप को छोड़ देंगी या फिर आपको एक दिन जबरन इन चीजों को छोड़ना ही पड़ेगा ॥ नाशवंत चीजों के पीछे भागने से बेहतर है कि अभिमान और परिग्रह सब बुरे कर्मों में बढ़ोतरी करते है जिनको छोड़ा जाये और सब से विनम्र भाव से पेश आए सब जीवों के प्रति मैत्री भाव रखें क्योंकि सभी जीवों को जीवन जीने का अधिकार है ॥

  • (ख) मार्दव धर्म हमें अपने आप की सही वृत्ति को समझने का माध्यम है क्योंकि सभी को एक न एक दिन जाना ही है तो फिर यह सब परिग्रहो का त्याग करें और बेहतर है कि खुद को पहचानो और परिग्रहो का नाश करने के लिए खुदको तप, त्याग के साथ साधना रुपी भठठी में झोंक दो क्योंकि इनसे बचने का और परमशांति मोक्ष को पाने की साधना ही एकमात्र विकल्प है ॥

उत्तम आर्जव

  • (क) हम सब को सरल स्वभाव रखना चाहिए और कपट को त्याग करना चाहिए॥
  • (ख) कपट के भ्रम में जीना दुखी होने का मूल कारण है॥

आत्मा ज्ञान, खुशी, प्रयास, विश्वास जैसे असंख्य गुणों से सिंचित है उस में इतनी ताकत है कि केवल ज्ञान को प्राप्त कर सके॥ उत्तम आर्जव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बुरे कर्म सब छोड़ छाड़ कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ॥

उत्तम शौच

  • (क) किसी चीज़ की इच्छा होना इस बात का प्रतीक है कि हमारे पास वह चीज़ नहीं है तो बेहतर है कि जो हमारे पास उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद कहें और संतोषी बनकर उसी में काम चलाये ॥
  • (ख) भौतिक संसाधनों और धन दौलत में खुशी खोजना यह महज आत्मा का एक भ्रम है।

उत्तम शौच धर्म हमें यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है उसी में खुश रहो परमात्मा का हमेशा आभार मानों और अपनी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना संभव है ॥

उत्तम सत्य

(क) झूठ बोलना बुरे कर्मों में बढ़ोतरी करता है ॥

  • (ख) सत्य जो ‘सत’ शब्द से आया है जिसका अर्थ है वास्तविक होना॥

उत्तम सत्य धर्म हमें यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना संभव है ॥ अपने मन, आत्मा को सरल और शुद्ध बना लें तो सत्य अपने आप ही आ जाएगा ॥

उत्तम संयम

पसंद, नापसंद ग़ुस्से का त्याग करना। इन सब से छुटकारा तब ही मुमकिन है जब हम अपनी आत्मा को इन सब प्रलोभनों से मुक्त करें और स्थिर मन के साथ संयम रखें ॥ इसी राह पर चलते परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति मुमकिन है ॥

उत्तम तप

  • (क) तप का अर्थ केवल उपवास तक ही सीमित नहीं है बल्कि तप का असली अर्थ है कि इन सब क्रियाओं के साथ अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को वश में रखना, ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करते है ॥
  • (ख) साधना इच्छाओं में वृद्धि ना करने का एकमात्र मार्ग है ॥ पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने लगभग छह महीनों तक ऐसी तप साधना (बिना खाए बिना पिए) की थी और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त किया था ॥

हमारे तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना इस काल में प्राय नहीं है पर हम भी ऐसी ही भावना रखते है और पर्यूषण पर्व के 10 दिनों के दौरान उपवास (बिना खाए बिना पिए), ऐकाशन (एकबार खाना-पानी) करतें है और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं ॥

उत्तम त्याग

  • (क) ‘त्याग’ शब्द से ही पता चल जाता है कि इसका मतलब छोड़ना है और जीवन को संतुष्ट बना कर अपनी इच्छाओं को वश में करना है, यह न सिर्फ अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है बल्कि बुरे कर्मों का नाश भी करता है ॥

त्यागने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत केवल घरबार ही नहीं यहां तक कि अपने कपड़े भी त्याग देता है और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतीत करता है ॥ इंसान की शक्ति इससे नहीं परखी जाती कि उसके पास कितनी धन दौलत है बल्कि इससे परखी जाती है कि उसने कितना छोड़ा, कितना त्याग किया है !

  • (ख) उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाके ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है ॥ त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही प्राप्त होती है ॥

उत्तम आकिंचन्य

  • (क) आँकिंचन हमें मोह को त्याग करना सिखाता है ॥ दस शक्यता है जिसके हम बाहरी रूप में मालिक हो सकते है; जमीन, घर, चाँदी, सोना, धन, अन्न, महिला नौकर, पुरुष नौकर, कपडे और संसाधन इन सब का मोह न रखकर ना सिफॅ इच्छाओं पर काबू रख सकते हैं बल्कि इससे गुणवान कर्मों मे वृद्धि भी होती है ॥
  • (ख) आत्मा के भीतरी मोह जैसे गलत मान्यता, गुस्सा, घमंड, कपट, लालच, मजाक, पसंद नापसंद, डर, शोक, और वासना इन सब मोह का त्याग करके ही आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है ॥

सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहो को छोडकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥

उत्तम ब्रह्मचर्य

  • (क) ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है कि उन परिग्रहो का त्याग करना जो हमारे भौतिक संपर्क से जुडी हुई है

जैसे जमीन पर सोना न कि गद्दे तकियों पर, जरुरत से ज्यादा किसी वस्तु का उपयोग न करना, व्यय, मोह, वासना ना रखते सादगी से जीवन व्यतित करना ॥ कोई भी संत ईसका पालन करते है और विशेषकर जैनसंत शरीर, जुबान और दिमाग से सबसे ज्यादा इसका ही पालन करते हैं ॥

  • (ख) ‘ब्रह्म’ जिसका मतलब आत्मा, और ‘चर्या’ का मतलब रखना, ईसको मिलाकर ब्रह्मचर्य शब्द बना है, ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा मे रहना है ॥

ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओ के गुलाम हि हैं ॥

इस दिन शाम को प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटू वचन से किसी के दिल को जानते और अनजाने ठेस पहुंची हो तो क्षमा याचना करते है ॥ एक दूसरे को क्षमा करते है और एक दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम करते है॥

 

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